जय जय भैरवि [ महाकवि विद्यापति ]
प्रस्तुत गीत गोसाओनिक वंदना थिक जे मिथिला मे घर घर मे गायल जायत छैक | एहि गीतक रचनाकार महाकवि विद्यापति छथि |
पसुपति अर्थात महादेवक अर्धांग्नी जिनका सं दैत्य डरायत छनि ओहि भगबती शिवानी कें जय हो | हे भगबती हमरा सुन्दर बुद्धिक वरदान दिअ | अहाँक चरण मे अनुगति भ’ हमरा सद्गति भेटत | ओ भगबती जे राति-दिन मृतकक आसन अर्थात सवासन पर विराजमान छथि ,जिनका चरण चंद्रमणि सं अलंकृत छनि ,जे कतेको दैत्य के मारि क’ मुँह मे मलि दैत छथिन तथा कतेको के कुर्रा जका उगलि दैत छथिन | अहाँक रूप पिंडश्याम अछि आ आँखि लाल लाल | ओ ऐना लगैत छैक जेना मेघ मे लाल लाल कमल फुलायल हो | तामसे कट कट करैत अहाँक दांतक प्रहार सं दुनू ओठ पांडुर फूल जकाँ लाल भ’गेल अछि, ओहि पर सोनितक फेन बुलबुलामय अछि | अहाँक चरणक नुपुर सं घन घन संगीतक स्वर बहरा रहल अछि | हाथ महक कत्ता हन हना रहल अछि | अहाँक चरणक सेवक विद्यापति कवि कहि रहल छथि जे हे माँ अपन संतान के नहि बिसरू |
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प्रस्तुत गीत गोसाओनिक वंदना थिक जे मिथिला मे घर घर मे गायल जायत छैक | एहि गीतक रचनाकार महाकवि विद्यापति छथि |
पसुपति अर्थात महादेवक अर्धांग्नी जिनका सं दैत्य डरायत छनि ओहि भगबती शिवानी कें जय हो | हे भगबती हमरा सुन्दर बुद्धिक वरदान दिअ | अहाँक चरण मे अनुगति भ’ हमरा सद्गति भेटत | ओ भगबती जे राति-दिन मृतकक आसन अर्थात सवासन पर विराजमान छथि ,जिनका चरण चंद्रमणि सं अलंकृत छनि ,जे कतेको दैत्य के मारि क’ मुँह मे मलि दैत छथिन तथा कतेको के कुर्रा जका उगलि दैत छथिन | अहाँक रूप पिंडश्याम अछि आ आँखि लाल लाल | ओ ऐना लगैत छैक जेना मेघ मे लाल लाल कमल फुलायल हो | तामसे कट कट करैत अहाँक दांतक प्रहार सं दुनू ओठ पांडुर फूल जकाँ लाल भ’गेल अछि, ओहि पर सोनितक फेन बुलबुलामय अछि | अहाँक चरणक नुपुर सं घन घन संगीतक स्वर बहरा रहल अछि | हाथ महक कत्ता हन हना रहल अछि | अहाँक चरणक सेवक विद्यापति कवि कहि रहल छथि जे हे माँ अपन संतान के नहि बिसरू |
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Thank you for the wonderful post. Even though I am not from Mithila, nor do I understand Maithili well enough, I have grown up listening to this song at my home. As these things work, today I wound up writing a blog post that has this prayer central to this theme. I have been audacious to translate what I could glean from this post. I have mentioed the source in my post. I hope I will be forgiven for that. (http://selfishgaurav.blogspot.in/2012/03/happy-holi-to-me.html)
ReplyDeleteधन्यवाद , इतने मधुर और सात्विक गीत के बोल के लिए, मैं दिल्ली से लक्ष्मीकांत पाण्डेय हूँ. इस गीत को सुनने के बाद प्रभु शिव शंकर और माँ गौरी के सक्षात् दर्शन की अनुभूति प्राप्त होती है. मुझे मैथली भाषा का तनिक भी ज्ञान नहीं है. प्रन्तु प्रभु ने प्यार और करुणा की भाषा समझने की कृपया कि है.
ReplyDeleteधन्यवाद करता हूँ , इस गीत के लेखक और सभी उन सहयोगी का जिन्होंने इस गीत में सहयोग किया भक्तों तक लाने में ।
Thank you , thanks a lot Hanuman jha jee for the lyrics .
ReplyDeleteNever in history Lord Shiva has acted as" bhritya" a servant. gr8/
ReplyDeletethat signifies the quality and status of maithil kokil kavi VIDYAPATI, shat shat naman!!!
Aetek sundar vishleshan lel bahut bahut dhanyawad,,ai tak ai geet ke lai ka karan Vidyapati k mahan bujhai chelaun,,ekar sabdik arth samaijh ka hunkarak kavya kalpna k atah sagar me jhaink sanklaun
ReplyDeleteमैथिल भाषी होते हुए भी इस गीत का पूरा अर्थ नहीं समझ पायी थी आजतक।
ReplyDeleteआपने आज कितनी बड़ी कृपा की है हमपर,यह शब्दों में बताना और केवल धन्यवाद कह उस ऋण से उऋण होना कतई संभव नहीं।
माँ भगवती सदा आपका कल्याण करें।
मैथिल भाषी होते हुए भी इस गीत का पूरा अर्थ नहीं समझ पायी थी आजतक।
ReplyDeleteआपने आज कितनी बड़ी कृपा की है हमपर,यह शब्दों में बताना और केवल धन्यवाद कह उस ऋण से उऋण होना कतई संभव नहीं।
माँ भगवती सदा आपका कल्याण करें।
aha bahut neek kaaj kar rahal chi hamara bhagwati geet aur arth sahit post k diya gmail id- mt774232@gmail.com "bhagwati aha ke shabta kast dur karthin
ReplyDeleteaha bahut neek kaaj kar rahal chi hamara bhagwati geet aur arth sahit post k diya gmail id- mt774232@gmail.com "bhagwati aha ke shabta kast dur karthin
ReplyDeleteThanking you from core of my heart for such a useful post reminding of our great MAITHIL culture!! We need to revive it, sublime it and bring it on international level.
ReplyDeleteAhan duno par ma Bhagwati ke krupa sada rahae. Hriday sen dhanyawad.
ReplyDeletegreat initiave. Greetings.
ReplyDeletedhany maha kabi vidyapati
ReplyDeletethanx a lot ...... for promoting maithili language in cyber world..
ReplyDeleteहम देवघरवासी अपना मूल मिथिला में ढूँढ़ते हैं।
ReplyDeleteकिंवदंति है कि कई शताब्दी पूर्व बैद्यनाथ महाप्रभु ने स्वप्न में आकर कुछ मिथिला के उस समय के ब्राह्मणों को देवघर आकर उनकी पूजा-अर्चना करें।
शिवजी के उस आदेश से मिथिला के विभिन्न मूल गोत्र के 17 परिवार वैद्यनाथजी की सेवा में देवघर आ गए। आज उनमे से 13 परिवारों का बसोबास है। लेकिन हम अपनी मौलिक मिथिला संस्कृति पर ही अभिमान करते हैं और इतराते हैं।
और उस समृद्ध मिथिला संस्कृति के एक अभिन्न अंग हमारे कविकुलगुरु श्री विद्यापति भी हैं।
माँ भवानी पर विरचित इस सुन्दर गीत को सुनकर मन भाव-विभोर हो गया।
हम देवघरवासी अपना मूल मिथिला में ढूँढ़ते हैं।
ReplyDeleteकिंवदंति है कि कई शताब्दी पूर्व बैद्यनाथ महाप्रभु ने स्वप्न में आकर कुछ मिथिला के उस समय के ब्राह्मणों को देवघर आकर उनकी पूजा-अर्चना करें।
शिवजी के उस आदेश से मिथिला के विभिन्न मूल गोत्र के 17 परिवार वैद्यनाथजी की सेवा में देवघर आ गए। आज उनमे से 13 परिवारों का बसोबास है। लेकिन हम अपनी मौलिक मिथिला संस्कृति पर ही अभिमान करते हैं और इतराते हैं।
और उस समृद्ध मिथिला संस्कृति के एक अभिन्न अंग हमारे कविकुलगुरु श्री विद्यापति भी हैं।
माँ भवानी पर विरचित इस सुन्दर गीत को सुनकर मन भाव-विभोर हो गया।
हम देवघरवासी अपना मूल मिथिला में ढूँढ़ते हैं।
ReplyDeleteकिंवदंति है कि कई शताब्दी पूर्व बैद्यनाथ महाप्रभु ने स्वप्न में आकर मिथिला के उस समय के ब्राह्मणों को देवघर आकर उनकी पूजा-अर्चना करने का आदेश दिया था।
शिवजी के उस आदेश पर मिथिला के विभिन्न मूल गोत्र के 17 परिवार वैद्यनाथजी की सेवा में देवघर आ गए। आज उनमे से 13 परिवारों का बसोबास है। लेकिन हम अपनी मौलिक मिथिला संस्कृति पर ही अभिमान करते हैं और इतराते हैं।
और उस समृद्ध मिथिला संस्कृति के एक अभिन्न अंग हमारे कविकुलगुरु श्री विद्यापति भी हैं।
माँ भवानी पर विरचित इस सुन्दर गीत को सुनकर मन भाव-विभोर हो गया।
हम देवघरवासी अपना मूल मिथिला में ढूँढ़ते हैं।
ReplyDeleteकिंवदंति है कि कई शताब्दी पूर्व बैद्यनाथ महाप्रभु ने स्वप्न में आकर मिथिला के उस समय के ब्राह्मणों को देवघर आकर उनकी पूजा-अर्चना करने का आदेश दिया था।
शिवजी के उस आदेश पर मिथिला के विभिन्न मूल गोत्र के 17 परिवार वैद्यनाथजी की सेवा में देवघर आ गए। आज उनमे से 13 परिवारों का बसोबास है। लेकिन हम अपनी मौलिक मिथिला संस्कृति पर ही अभिमान करते हैं और इतराते हैं।
और उस समृद्ध मिथिला संस्कृति के एक अभिन्न अंग हमारे कविकुलगुरु श्री विद्यापति भी हैं।
माँ भवानी पर विरचित इस सुन्दर गीत को सुनकर मन भाव-विभोर हो गया।
Nice. Good job
ReplyDeleteMAA KE AHI GEET KE BAHUT SUNDER VYAKHYA KELOUN APNE. BAHUT- 2 DHANYBAAD.
ReplyDeleteऐसी मधुरता और कहां
ReplyDeleteबहुत सुंदर व्याख्या कइले बानी रउआ ! एकाध गो शब्द ना बुझाईल बाकिर ओकरा से कवनो परेशानी नईखे ! जय मिथला , हर हर महादेव !!
ReplyDeleteबड़ी कृपा की आपने,मैं खुद बिहारी होकर भी महाकवि की इस अमर कृति का भावार्थ नहीं जानता था। आपको कोटिशः धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति महाकवि विद्यापति द्वारा लिखित जय जय भैरवी असुर भयावानी का अर्थ सहित जो आपने प्रस्तुत किया है उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद जय श्री राम
ReplyDeleteशब्द अर्थक लेल आभार अछि। कते स्लोकके अर्थ नहि लिखने छी कृपा करि ओहुकें पुरा कएल जाओ।जेना चरण चन्द्रमणि चुुडा- एकर भाव की छै ?
ReplyDeleteगजेन्द्र गजुर
सङ्गोर मिथिला नेपाल
Jay Maa Bhawani jay bholenath jay mithila jay maithili,bahut bahut dhanyawad🌹🙏
ReplyDeleteOverwhelmed to get the import of this timeless creation of Kavikokil Vidyapati in so lucid a way !
ReplyDeleteVisit our Blogspot
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